मेरी अमृता....

मेरी अमृता....

Tuesday, July 22, 2014

ये बहुत अजीब बात है की अमृता जी अपने सपनों में ईश्वर के रूपों को देखा करती थीं
कभी साईं ...कभी शिव ..कभी राम ...कृष्ण ...अल्लाह ....गुरुनानक साहब .... जैसे उनका कुछ हिस्सा इन विश्वास के प्रतीकों संग बंधा रहा हो ..... उन्होंने अपनी आख़िरी किताब  ''मैं तुम्हें फिर मिलूँगी'' में कुछ हिस्से में अपनी नज्मों को और बाक़ी में अपने सपनों को शामिल किया जिसमें उन्होंने अपने विश्वास को आत्मसात करते हुए शब्दों का रूप दिया ....

अमृता जी बेहद पाक़ रूह थी जिनके ज़ेहन में ईश्वर ने अपना स्थान लिया ....अमृता जी अपने धर्म के आलावा भी सभी धर्मों को पढ़ती, लिखती और अनुसरण करती थी ....अपनी किताब ''अक्षरों के साये'' में उन्होंने हिन्दू ग्रंथो का ज़िक्र किया हिन्दू धर्म के इतिहास को बताया और अपने विश्वास को भी ....
''रात भारी है'' किताब में उन्होंने ईसाई धर्म का ज़िक्र किया ....अगर आप पढ़ते है उसे तो आप जान पाएंगे की ऐसी बहुत सी अनसुनी बातें उन्होंने उसमें लिखी जो ईश्वर के प्रति विश्वास को बनाये रखने के प्रमाण देती  हैं.

अमृता जी ने अपनी लेखनी अपने सपनों का ज़िक्र किया  जिसमें न केवल उन्होंने ईश्वर के स्वरूपों के दर्शन किये वरन अपने सपनो के मतलब भी तराशें ..... उनका हर सपना एक भेद खोलता था उनकी ज़िन्दगी के ....
यह बहुत अद्भुत है ......इस कदर का रिश्ता होना ....बेहद आश्चर्यजनक और चमत्कारी रूह का प्रमाण है और निश्चित ही अमृता जी रूहानी शक्सियत थी ....


2 comments:

  1. अमृता जी की मैंने एक ही किताब पढ़ी है....रसीदी टिकट.... इस किताब पर उनहे एवार्ड भी मिला है निबंध को थोड़ा और विस्तृत कीजिए

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  2. बबन जी ...अपने एक पढ़ी है मैंने सभी पढ़ी है .....विस्तृत कहने से अच्छा होता आप कहते की ......मुझे लगता है मुझे इन्हें और पढना चाहिये .... उनका न पढ़ पाना शायद हर लेखक के लिए अफ़सोस की बात है ...पढिये उन्हें ...

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