मेरी अमृता....

मेरी अमृता....

Wednesday, June 4, 2014

अमृता जी की चाहा मुझे लेखन में खिंच लायी ..... मैं यूँही लिखा करती थी, अमृता जी को पढ़ा करती थी फिर जब मेरी ज़िन्दगी ने करवट बदली और परिस्थितियों ने खामोशी को जन्म दिया तो मैं .....मैं न रह कर लेखक भी हो गयी .......ये ख़ामोशी मेरी ज़िन्दगी की बदलती परिस्थतियों की देन थी इसलिए ये मेरी संतान हुई....

ख़ामोशी को मैंने सहर्दय स्वीकार किया ....अपने सीने से लगा कर आज भी इसे लोरियाँ सुनाती हूँ .... ये बात और है की ख़ामोशी सिर्फ बढ़ती है .....शोर करती है ..... पर बहलती नहीं , चुप नहीं होती .....

अब तक मैं इसे नज़्म लिख बहलाती रही पर जब मेरे ज़हन में कोई नज्म न हो तो मैं क्या करूं ? कोई उपाय नहीं मिला मुझे .......इसलिए अब इसे मैंने बाँट लिया ....अमृता जी के ख्यालों संग .... जब मुझे हद-तर सता लेती है ख़ामोशी ......तब मैं .....अमृता जी के ख्याल थमा इसके हाथों में .....थोडा सुकून पा लेती हूँ ......

अमृता जी मेरी हर परिस्थति की साथी है ...... मेरी ज़िन्दगी का हिस्सा है ......अमृता जी यहाँ है मुझे में कहीं ......मेरी अमृता बन कर ........