मेरी अमृता....

मेरी अमृता....

Saturday, May 17, 2014

मैं अक्सर ख़ुद को उन एहसासों से जोड़ने की कोशिश करती हूँ जो अमृता जी ने अपने अकेलेपन और तन्हा पलों में बितायें होंगे। किस क़दर सोचते हुए उन्होंने वो दिन जीये, क्या सहते हुए, उस घुटन और बैचैनी को मैं महसूस करने की कोशिश करती हूँ पर मेरे प्रयास व्यर्थ है। वो अद्धभुत शख़्सियत थी उनकी जैसी रूहें कई जन्मों के बाद इन्सानी रूप लेती है। मैं शायद उनके क़दमों की धूल भी न बन सकूँ पर ये जरूर चाहती हूँ की उनके नाम की गूँज मेरे कानों में सदा पड़ती रहे। 

 उन्होंने जो खोया, जिस तरहा से खोया उसका दर्द मैं समझती हूँ। कई बार ऐसा लगता है जैसे उनकी ज़िन्दगी के पन्ने जो ख़ाली रह गये होंगे उस पर ही मेरी ज़िन्दगी को उतार दिया गया है। उनके ज़ख़्म, उनका दर्द , उनका वो एकाकीपन और उसमे उलझी उनकी ज़िन्दगी की डोर जैसे अब मेरे हिस्से में आ गए है और ये सभी मुझे अज़ीज़ है, मेरे लिए अनमोल है।

मैं जानती हूँ अपने प्यार से अलगाव और फिर उसके गम से लगाव जीवन को जीने का बहाना दे देते है। अपने प्यार का न हो पाने की चुभन, उसकी टीस ताउम्र साथ चलती है जो न कभी मरने देती है और न ही जीने देती है। अमृता जी ने ख़ुशी से ऐसे जीवन को जीया और अमरप्रेम की अनोखी मिसाल क़ायम की । उनके शब्दों में उनके जीवन की ख़ूबसूरती, तसल्ली और सन्तोष की छवि साफ़ झलकती है।

मैं अमृता जी जितनी मज़बूत और सहनशील नहीं शायद फिर भी अपने गम को सहर्ष गले से लगाये इसी के साथ जी रही हूँ और जीती रहूँगी। अमृता जी को पढ़ कर हर बार मेरे टूटते कदम खुद-बा-खुद सम्भल जाते है। अमृता जी मेरी आराध्य, मेरी गुरु, मेरी प्रेरणा है और उनका मेरे सपनो में आना, मुझ से मिलना ये इस बात का प्रमाण है की वो मुझे सुनती है, देखती है और मुझे अपना आशीर्वाद दे रही है।
हमारे बीच का ये अनसुना सा रिश्ता अनोखा है, अद्धभुत है जिसको व्यक्त करना मेरे लिए शब्दों में नामुमकिन है। 

 



No comments:

Post a Comment