मेरी अमृता....

मेरी अमृता....

Tuesday, January 14, 2014

अमृता-इमरोज़ से मिलना- सिलसिला-1 (14 जनवरी 2014)

आज शाम मेरे लिए अनमोल तोहफ़ा लायी जिसका ज़िक्र मुझे पल में ख़ुश करता है और फिर रुलाता भी है। सोशल साईट से जुड़ना आज सच मायने में मुझे आनंदित कर रहा है जिसके लिए मैं इसके जन्मदाता को बारम्बार धन्यवाद दे रही हूँ। रोज़ की तरह मेरा लेखन और लोगो से, दोस्तों से मेल-मिलाप यानी बातों का सिलसिला सोशल साईट पर हो रहा था, इसी बीच ''रश्मि प्रभा जी'' की एक रचना देखीं जिसमें वह इमरोज़ जी के साथ थी। मैंने तभी उत्सुकता और लालायित हो कर उन्हें पूछा- ''आप इमरोज़ जी से मिले हो?''
उन्होंने जवाब में कहा- ''हाँ, मोबाइल पर सन्देश भी भेजतीं हूँ और बातें भी करती हूँ। ''
मैंने दिल की बात कह दी तभी ''मुझे उनसे मिलना है। ''
रश्मि जी -''तो मिलो, कहाँ हो?''
मैं - आगरा
रश्मि जी - ''दिल्ली, ग्रेटर कैलाश में है वें ''
मैं- आपने मेरा एक लेख़ पढ़ा होगा शायद, आप समझ पाओगी की मैं क्यूँ उनसे मिलना चाहती हूँ।
रश्मि जी- ''आज तो उन्होंने मैसेज किया -वो है भूलने वाली ही ज़िन्दगी भी होती है, मोहब्बत भी और रश्मि भी। ''
मैं- मैं अमृता जी से नहीं मिल पायी, जिसका मुझे बेहद अफ़सोस है जो हर दिन मुझे रुलाता है, आप कितनी ख़ुशनसीब है जो आप इमरोज़ जी से मिलते हो।
रश्मि जी- ''इमरोज़ तो प्रेम है प्रियंका, उनसे मिल कर सब पारस हो जाते है। चाहोगी तो नंबर दूँगी उनका ''
और मैं रो पड़ी, उनकी इस बात ने जैसे मुझे मेरे ख़ुदा के दर का नक्शा दिखा दिया था और मैं उस पल खुद को सम्भाल नहीं पा रही थी। मैंने कुछ नहीं कहा तभी रश्मि जी के जवाब में ''इमरोज़ जी का फ़ोन नंबर आया '' मैं अपने हाथों से चेहरे को छुपा लिया और फूट-फूट कर रोने लगी।
मुझे यक़ीन नहीं हो रहा था इसलिए मैंने रश्मि जी से कहा- आप ऐसे काहें आपको नहीं पता मेरे लिए इसके क्या मायने है।
रश्मि जी बोली - वक़्त नही रुकता प्रियंका, इमरोज़ जी ख़ुदा है, 74 उम्र कम नहीं !
मैंने उन्हें पूछा - वो कैसे है, उनकी आवाज़ कैसी है और अमृता जी के बारे में क्या बोलते है वो?
रश्मि जी- ''अमृता वर्तमान है उनके लिए, अमृता आती है, कहती है...... एक फक़ीरी आवाज़ है वो '' तुम भी, जो रो रही हो आँसू मूल्यवान होते है।
और उन्होंने मुझे अभिनव इमरोज़ में पढ़ा इमरोज़ जी की नज्म पढ़ने को दी। मैं पढ़ते हुए सोच रही थी कि रश्मि जी ने सही कहा आँसू मूल्यवान होते है, तो मैं भी तो वही कर रही थी अपने ईश्वर के नाम पर आँसू बहा रही थी इसलिए तो ये है इनका मूल्य इसलिय ही तो है।
रश्मि जी ने जाते हुए ये भी कह दिया कि '' कभी आओ दिल्ली तो मिलना '' और फिर दुआ दी ''खूब ख़ुश रहो और यूँही लिखती रहो '' और चली गयी।
उनके जाने के बाद ख़ुशी से और कभी अपनी मजबूरियों को सोच रोने लगती, बहुत खुश थी मैं आँखों ने तो जैसे जश्न में अश्क़ों की बहार लूटा रखी थी। मन बौरा गया था दिल में आता था ज़ोर ज़ोर से चिल्लाऊँ, सब को बताऊँ कि ''देखो मुझे आज क्या मिला है, मेरे ख़ुदा के प्यार से मिलने का मौका, उनसे बात करने का मौका मिला है मुझे मेरे ख़ुदा के दर जाने का मौका मिला है। '' पर नहीं कर सकती मैं ये कोई नहीं समझेगा, कोई नहीं समझेगा मेरे सपने को जो शायद यूँ पूरा हो सकता है और इसलिए मैं रोने लगी।
क्या करूँ कुछ समझ नही आता, शायद रोना आसां होता है इसलिए...........
बत्तियाँ बुझा कर लेट गयी कुछ देर में ही सही पर शायद नींद जायेगी , पर मैं जानती हूँ आज नींद नहीं आएगी।
मन उछाले मारने लगा जैसे अभी ही मुझे तैयार हो कर जाना है इमरोज़ जी से मिलने, अमृता जी के घर उनके घर........आहा!!!
सोचा, वो सूट पहन के जाऊँगी, यूँ बाल बनाऊँगी और खूबसूरत फूलों का गुलदस्ता ले कर जाऊँगी, अरे, मेरा कैमरा तो रह ही गया और अपनी कुछ कविताएं भी लेती जाऊँगी, सुनाऊँगी इमरोज़ जी को.………
जाने कैसे मिलूँगी, कहीं रो जाऊं उन्ही के सामने, रो ही जाऊँगी पर खुद को रोक कर रखुंगी......रख पायी तो।
घर की ज़मीं पर पैर रखते ही सज़दा कर लूँगी , मेरे ख़ुदा का दर जो है और जैसे उमा जी ने ''अमृता-इमरोज़'' में लिखा था की हर तरफ इमरोज़ जी की बनायीं हुई अमृता जी की तस्वीरें है उन्हें देखूँगी फ़ोटो लूँगी, अमृता जी की हर तस्वीर का फ़ोटो लेना है मुझे....
बहुत संकोच है मन में और थोड़ा डर भी बस इमरोज़ जी मुझे ग़लत समझे ,अमृता जी के लिए मेरे भाव काश वो समझ पायें। घर में कमरों की तरफ बढ़ती जा रही थी और नज़रें सिर्फ दीवारों पर, तस्वीरों पर और इमरोज़ जी को ढूँढ रही थी।
मुझे उस पवित्र जगह का एहसास होने लगा था, गिरजा घर जैसी शान्ति और गुरुदुआरे जैसी महक अब यक़ीन हो गया था ये मेरे ईश्वर का घर है।
तभी सामने से इमरोज़ जी आये हल्की मुस्कान और जैसे बाँहें ख़ुली हो स्वागत में........ आहा.....
आप सर , मैं.…… ओह्ह  ....... समझ नहीं आया क्या कहूँ फिर गुलदस्ता आगे किया और उसमे से एक फूल निकाल कर इमरोज़ जी को देते हुए कहा - ये आपके लिए.…… उन्होंने मुस्कुरा कर फूल ले लिया फिर पूछा और ये बाक़ी………..
मैं कुछ बोलीं बस कमरे में नज़र दौड़ायी और कोने में रखी अमृता जी की तस्वीर के पास गयी, उनको देखा……… सर झुका सज़दा किया और गुलदस्ता उन्हें दे कर कहा- अमृता जी देखिये मैं आपसे मिलने आयी हूँ, वक़्त ने जो छीन लिया मुझ से उसे वापस माँग लायी हूँ, देखिये मैं आपसे मिलने आयी हूँ ये फूल आपके लिए और मैं फूल उन्हें दे दिये, कुछ देर उन्हें दिखती रही और फिर सब्र का बांध टूट गया मैं रो पड़ी।
जैसे अपने ख़ुदा के सामने बेपर्दा हो गयी में और दिल खोल कर रख दिया मैंने उस समय अमृता जी के आगे, मैं क्यूँ रो रही थी नहीं जानती और किसी को मैं ये बता भी नही सकती, क्या कहूँगी , कोई क्या समझेगा , कोई नहीं समझेगा जानती हूँ सब पागल ही कहेंगे। 
पर मैं बताऊँ भी क्यूँ ये जो है मेरा है और अमृता जी का वो शायद समझ रही है और शायद इमरोज़ जी भी समझेंगे………काश ये सब सच हो जाये मैं एक बार ही सही पर अपने ईश्वर के घर अपने तीर्थ हो आऊँ...…… क़ाश!!!.........