मेरी अमृता....

मेरी अमृता....

Saturday, August 31, 2013

अमृता, तुम नहीं हो फिर भी....

एहसासों की लेखनी में श्रेष्ठ कवयित्री अमृता जी के जन्म दिन के उपलक्ष्य में मेरी एक अदना सी कोशिश, उनको बयां कर पाना आसां नहीं है,बस कोशिश की है....

नज्मों को सांसें
लम्हों को आहें
भरते देखा
अमृता के शब्दों में
दिन को सोते देखा
सूरज की गलियों में
बाज़ार
चाँद पर मेला लगते देखा
रिश्तों में हर मौसम का
आना - जाना देखा
अपने देश की आन
परदेश की शान को
देसी लहजे में पिरोया देखा
मोहब्बत की इबारत को
खुदा की बंदगी सा देखा
अक्सर मैंने अपने आप को
अमृता की बातों में देखा
शब्द लफ्ज़ ये अल्फाज़
अमर है तुमसे
हाँ, मैंने तुम्हें जब भी पढ़ा
हर पन्ने पर तुम्हारा अक्स है देखा
अमृता, तुम नहीं हो फिर भी
आज हर लेखक को
बड़ी शिद्दत से
तुम्हें याद करते देखा......

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